बिहार आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और यूनिसेफ़ आयोजित किया वेबिनार

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पटना 27 अगस्त: “आपदा के दौरान नाज़ुक वर्ग यानि महिलाओं और बच्चों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए. आपदा से कारगर ढंग से निबटने के लिए सबकी भागीदारी ज़रूरी है. अतीत के अनुभव से सीख लेते हुए सरकार ने प्रभावी आपदा प्रबंधन के मद्देनज़र ज़ोखिम कम करने (रिस्क रिडक्शन) पर ध्यान केंद्रित किया है. मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि एकीकृत प्रयासों के ज़रिए हम हर व्यक्ति तक पहुंच सकते हैं और बिहार को एक सुरक्षित राज्य बना सकते हैं.”

बिहार आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के उपाध्यक्ष व्यास जी ने बिहार आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और यूनिसेफ़ द्वारा पत्र सूचना कार्यालय के सहयोग से आयोजित बच्चों और महिलाओं पर केंद्रित बाढ़ और आपदाओं के दौरान कार्रवाई हेतु मीडिया उन्मुखीकरण (ओरिएंटेशन) ऑनलाइन कार्यक्रम में उक्त बातें कहीं. इस कार्यक्रम में बिहार के अलग-अलग ज़िलों के पत्रकारों ने भाग लिया जिन्हें आपदा विशेषज्ञों व वरिष्ठ मीडियाकर्मियों ने संबोधित किया.

यूनिसेफ बिहार की संचार विशेषज्ञ, निपुण गुप्ता ने मेहमानों का स्वागत किया और कहा कि मीडिया वाले भी कोरोना योद्धा हैं क्योंकि वे अपनी जान की परवाह किए बिना लगातार बाढ़ क्षेत्र से रिपोर्टिंग कर रहे हैं. मीडियाकर्मियों को कोरोना काल में सुरक्षित पत्रकारिता के लिए भारत सरकार और यूनिसेफ़ द्वारा जारी सुरक्षा दिशा-निर्देश के मद्देनज़र अपनी सुरक्षा करते हुए रिपोर्टिंग करनी चाहिए. उन्होंने बाल संबंधित समाचारों को कवर करने के लिए डू नो हार्म और बेस्ट इंटरेस्ट के सिद्धांतों को दोहराया.

यूनिसेफ के डीआरआर ऑफिसर बंकू बिहारी सरकार ने डीआरआर ई-एकेडमी के उद्देश्यों की चर्चा की तथा लॉकडाउन के दौरान जागरूकता फैलाने में इसके योगदान का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि एकेडमी के द्वारा अभी तक 21 जिलों के 3000 प्रखंड और जिला स्तर के सरकारी अधिकारियों को मॉनसून के दौरान घटित होने वाली आपदा के बारे में प्रशिक्षित किया जा चुका है.

वरिष्ठ मीडिया विशेषज्ञ व पूर्व आकाशवाणी अधिकारी, राजीव कुमार शुक्ल ने कहा कि बीते कई सालों में आपदा की संख्या और आवृत्ति काफ़ी बढ़ी है. इसे देखते हुए आपदा के समय मीडिया की भूमिका काफ़ी अहम हो जाती है. उन्होंने कहा कि आपदा की रिपोर्टिंग करने के तीन चरण होते हैं – आपदा से पूर्व, आपदा के दौरान और आपदा के बाद. साथ ही, उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि आपदा के प्रभावों को कम करने के लिए मीडिया को सम्मिलित किया जाना चाहिए. सोशल मीडिया के युग में सही और तथ्यात्मक जानकारी लोगों तक ससमय पहुंचाना मीडिया का मुख्य दायित्व है.

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के पूर्व सदस्य डॉ मुज़फ्फर अहमद ने अपने प्रस्तुतिकरण में आपदा की आधिकारिक परिभाषा, प्रभाव और सरकारी अनुबंधों के बारे में विस्तार से बताया. उन्होंने कहा कि भारत दुनिया के दस सबसे अधिक आपदा प्रभावित देशों में पांचवें स्थान पर है. इससे केंद्र सरकार के राजस्व को हर वर्ष 12 फीसदी और जीडीपी का लगभग 2 फीसदी का नुकसान होता है. आगे, उन्होंने आपदा से जुड़े विभिन्न नियमों, दिशानिर्देशों, राष्ट्रीय नीति और बिहार के आपदा रोड मैप का भी जिक्र किया. साथ ही, उन्होंने बाढ़ के कारण होने वाली बीमारियों और मानसिक तनाव से भी पत्रकारों को अवगत कराया. आपदाओं के दौरान 33 से 50 फ़ीसदी मौतें कुपोषण की वजह से होती हैं। इसलिए, प्राथमिकता के आधार पर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक है. इसे देखते हुए सतत विकास लक्ष्य (SDG) के 11वें लक्ष्य जिसमें शहरों और मानव बस्तियों को समावेशी, सुरक्षित, आपदाओं को सहने योग्य और टिकाऊ बनाने पर ज़ोर दिया गया है, को संजीदगी से लेने की ज़रूरत है.

वरिष्ठ पत्रकार पुष्यमित्र और संतोष कुमार सिंह ने पत्रकारों को बाढ़ जैसी आपदा को कवर करने के लिए बहुमूल्य सुझाव दिए. पुष्यमित्र ने कहा कि बिहार में बाढ़ अपने आप में एक आपदा भी है और नहीं भी, क्योंकि बाढ़ हर वर्ष आती है और इसकी पूर्व तैयारियां भी की जाती हैं. बाढ़ संबंधी पुख़्ता रिपोर्टिंग के लिए मीडियाकर्मियों को आपदा प्रबंधन विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध बाढ़ संबंधी 22 सूत्री सर्कुलर व अन्य उपयोगी जानकारियों से ख़ुद को अपडेट करना चाहिए। बाढ़ निवारण व प्रबंधन को लेकर सरकारी दिशानिर्देशों के ज़मीनी स्तर पर अनुपालन व कमियों को ईमानदारी से उजागर करना मीडिया का दायित्व है.
संतोष कुमार सिंह ने कहा कि आपदा के बारे में रिपोर्टिंग, खासकर जब बच्चों और महिलाओं के मुद्दों के बारे में रिपोर्टिंग की जा रही हो, तब पत्रकारिता की नैतिकता का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए. उन्होंने पत्रकारों को सनसनीखेज कहानियों से बचने और तथ्यात्मक खबरों पर फोकस होने की सलाह दी.

डीआरआर कंसल्टेंट, यूनिसेफ बिहार, घनश्याम मिश्रा ने विस्तार से बताया कि कैसे मीडिया सामाजिक स्वयंसेवकों के साथ समुदाय और पंचायतों को संवेदनशील बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। उन्होंने रेखांकित किया कि महामारी के दौरान बच्चे सबसे अधिक असुरक्षित होते हैं क्योंकि पेरेंटिंग लैप्स के कारण वे काफी हद तक उपेक्षित हो जाते हैं। इसके अलावा, स्कूलों और आंगनवाड़ी केंद्रों के बंद होने से शिक्षा का नुकसान और कुपोषण की समस्या में इज़ाफ़ा होता है.
डॉ. मधु बाला, परियोजना अधिकारी, बीएसडीएमए ने प्रतिभागियों को बिजली गिरने की घटनाओं व एहतियाती उपायों के बारे में विस्तार से बताया. उन्होंने बचाव के लिए इंद्रवज्र ऐप और संजीवनी ऐप का उपयोग करने की सलाह दी. राज्य आपदा न्यूनीकरण बल के के के झा ने अपनी प्रस्तुति में सर्प दंश से जुड़ी विभिन्न जानकारियों के साथ-साथ बचाव हेतु प्राथमिक चिकित्सा विधियों और अन्य उपयोगी सूचनाओं के बारे में भी बताया.

कार्यक्रम का समापन बंकू बिहारी सरकार के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ किया गया.

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