आर्थिक सर्वेक्षण 2018

 आर्थिक सर्वेक्षण

आम बजट से पहले हर साल सरकार एक सर्वेक्षण पेश करती है जो देश की आर्थिक स्थिति की दशा और दिशा को बताता है। यह वित्त मंत्रालय की ओर से पेश की जाने वाली आधिकारिक रिपोर्ट होती है, जिसे इकनॉमिक सर्वे कहा जाता है। इसमें अर्थव्यवस्था के क्षेत्रवार हालातों की रूपरेखा और सुधार के उपायों के बारे में बताया जाता है। मोटे तौर पर, यह सर्वेक्षण भविष्य में बनाई जाने वाली नीतियों के लिए एक दृष्टिकोण का काम करता है। विस्तृत आर्थिक स्थिति में इस बात पर भी जोर दिया जाएगा कि किन क्षेत्रों पर सरकार को ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। आर्थिक सर्वेक्षण मुख्य आर्थिक सलाहकार के साथ वित्त और आर्थिक मामलों की जानकारों की टीम तैयार करती है।

 

आर्थिक सर्वेक्षण 2018 की मुख्‍य बातें 

  • फिस्कल ईयर 2014-15 से 2017-18 के बीच जीडीपी की औसत ग्रोथ रही 3 फीसदी। यह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले सबसे ज्यादा है.2018-19 में जीडीपी 7 प्रतिशत से बढ़कर 7.5 प्रतिशत पर पहुंचेगी.
  • फाइनैंशल इयर 2017-18 के लिए राजकोषीय घाटा 2 पर्सेंट रहने का अनुमान।
  • सर्वे के मुताबिक मीडियम टर्म में रोजगार, शिक्षा और कृषि पर होगा सरकार का फोकस।
  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मौजूदा फाइनैंशल इयर में 3 पर्सेंट रहने का अनुमान।
  • थोक मूल्य सूचकांक के 9 पर्सेंट तक रहने की संभावना।
  • इस साल विदेशी मुद्रा भंडार में बड़े इजाफे की उम्मीद। 4 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचेगा आंकड़ा।
  • आर्थिक सर्वेक्षण में कच्चे तेल की औसत कीमतों में 12% की बढ़ोतरी हुई है.आयात में बढोत्तरी के कारण, 2017-18 में माल और सेवाओं का शुद्ध निर्यात घटने की संभावना है. निर्यात वृद्धि को बढ़ाने का सबसे बड़ा स्रोत है.
  • सर्वे के मुताबिक साल 2017-18 में GDP 75 फीसदी रहने की उम्‍मीद है. यह 2016-17 में 7.1 फीसदी और 2015-16 में 8 फीसदी थी. साल 2018-19 में 7 से 7.5 रहने का अनुमान है. इनडायरेक्‍ट टैक्‍स देने वालों में 50 फीसदी का इजाफा हुआ है. विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर वर्ष 2017-18 में 409.4 बिलियन यूएस डॉलर रहने का अनुमान है. एक्‍सपोर्ट में शानदार ग्रोथ देखने को मिला. वर्ष 2015-16 में जहां यह -15.5 फीसदी निगेटिव ग्रोथ था वहीं वर्ष 2017-18 में इसे 12.1 फीसदी रहने का अनुमान है. इंडस्‍ट्रियल ग्रोथ में पिछले वित्‍त वर्ष 2016-17 की तुलना में 1.4 फीसदी कम रहने का अनुमान है. वर्ष 2016-17 में यह 4.6 फीसदी था वहीं इसे इस वित्त वर्ष 2017-18 में 3.2 फीसदी रहने का अनुमान है.

 

  • जीडीपी के एक अनुपात के रूप में केन्‍द्र एवं राज्‍यों द्वारा सामाजिक सेवाओं पर व्‍यय 2012-13 से 2014-15 के दौरान 6 प्रतिशत के दायरे में बना रहा था. 2017-18 (बजट अनुमान) में सामाजिक सेवाओं पर व्‍यय 6 प्रतिशत है. साल 2017-18 के दौरान लगभग 4.6 करोड़ परिवारों को रोजगार प्रदान किया गया है जिसका कुल योग 177.8 करोड़ व्यगक्ति दिवस होता है, इसमें महिलाओं की 54 प्रतिशत, अनुसूचित जाति की 22 प्रतिशत और अनुसूचित जन जाति 17 प्रतिशत भागीदारी शामिल है.

 

  • फाइनेंस मिनिस्ट्री के आर्थिक सर्वेक्षण 2018 के मुताबिक, भारत का निर्यात मजबूत हुआ है. बड़ी कंपनियों के साथ ही निर्यात में छोटी कंपनियोंकी हिस्सेदारी भी बढ़ी है. दूसरे देशों के मुकाबले भारत की बड़ी कंपनियों की हिस्सेदारी कम है. यह सिर्फ 38 फीसदी है. वहीं ब्राजील में यह 72 फीसदी, जर्मनी में 68 फीसदी, मेक्सिको में 67 फीसदी और यूएसए में 55 फीसदी बड़ी कंपनियां ही निर्यात करती हैं.

 

  • सर्वेक्षण में बताया गया है कि 2016 में भारत में स्वास्थ्य हानि के लिए बाल एवं मातृत्व कुपोषण सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण व जोखिम भरा कारक रहा है. अन्य प्रमुख कारक हैं वायु प्रदूषण, आहार आधारित जोखिम, उच्च रक्तचाप तथा मधुमेह आदि हैं. 1990 से 2015 की अवधि के दौरान जीवन प्रत्याशा 10 वर्षों तक बढ़ी है. फिर भी, सर्वेक्षण में इस बात पर चिंता व्यक्त की गई है कि विभिन्न शहरों में नैदानिक जांचों के औसत मूल्यों में भारी अंतर है, जिसका समाधान स्वास्थ्य सेवाओं पर आउट ऑफ पॉकेट एक्सपेंसिस (ओपीई) को कम करने हेतु दरों का मानकीकरण किए जाने की आवश्यकता है.
  • ग्रामीण भारत में स्वच्छता कवरेज 2014 में 39 प्रतिशत से बढ़कर जनवरी 2018 में 76 प्रतिशत हो गया. 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के शुभारंभ के साथ, ग्रामीण भारत में स्वच्छता कवरेज में काफी वृद्धि हुई. अब तक, पूरे भारत में 296 जिलों और 307,349 गांवों को ओपन डेफकेशन फ्री (ओडीएफ) घोषित किया गया है.
  • ताजा आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार 2017 में खरीफ उपजों को राज्य निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर न बेच पाने के कारण किसानों को 36000 करोड़ का नगद नुकसान हुआ है.
  • कृषि दबाव कम करने और किसानों की आय बढ़ाने के सरकार के लक्ष्य को पूरा करने के लिए किसानों को विज्ञान और तकनीक उपलब्ध करवाने, अलक्षित आर्थिक मदद के स्थान पर प्रत्यक्ष आमदनी मदद और कुशल ड्रिप तथा छिड़काव तकनीक द्वारा सिंचाई में बड़े बदलाव जैसे निर्णायक प्रयासों समेत लगातार मौलिक कार्यवाही जरूरी है

जीएसटी से क्या हुआ फायदा

  • जीएसटी के आंकड़ों से पता चलता है कि इनडायरेक्ट टैक्सपेयर्स की संख्या में 50 फीसदी का इजाफा हुआ है. इनकम टैक्स डायरेक्ट टैक्स की कैटेगरी में आता है.
  • आर्थिक सर्वे के मुताबिक, भारत में ऐसा पहली बार हुआ जब 5 राज्य-महाराष्ट्र, गुजरात, कर्णाटक, तमिलनाडु और तेलंगाना का भारत के कुल निर्यात में 70 प्रतिशत योगदान रहा.
  • माल और सेवा (गैर जीएसटी माल एवं सेवा को छोड़कर) के क्षेत्र में भारत का आंतरिक ट्रेड कुल जीडीपी का 60 प्रतिशत रहा.
  • 14 साल में पहली बार सॉवरेन बॉन्ड रेटिंग अपग्रेड हुई. मूडीज ने 18 नवंबर 2017 को सरकारी बॉन्ड की रेटिंग अपग्रेड की थी.

जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव

  • ताजा आर्थिक समीक्षा में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों की भी चर्चा की गई है। इसमें आगाह किया गया है कि इसके दुष्प्रभावों से आने वाले कुछ सालों में कृषि आमदनी में 20-25 फीसदी की कमी आ सकती है.
  • जलवायु परिवर्तन की मार गैर सिंचित कृषि पर ज्यादा होगी. आज भी 50 फीसदी कृषि मानसून पर निर्भर है.

सतत विकास लक्ष्‍य और सर्वेक्षण

  • सर्वेक्षण में सतत विकासात्मक लक्ष्यों से जुड़े नए मुद्दों को भी हाइलाइट किया गया है। 17 वर्षों के अंतराल के बाद आर्थिक सर्वेक्षण में लिंग आधारित अध्याय फिर शुरू किया गया है। राष्ट्रीय लोक वित्त और नीति संस्थान द्वारा किए गए सर्वेक्षण में भारत में लिंग बेहतरी के तीन अहम मुद्दों की पहचान की गई है। इन में शामिल हैं- महिला रोजगार कैसे बढ़ाया जाए, प्रजनन संबंधी चुनाव और पुत्र प्राथमिकता तथा पुत्र ‘मैटा’ प्राथमिकता कम करना।
  • सतत विकास, ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन प्रखंड, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का उल्लेख करता है। यह सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों से स्पष्ट होता है। पेरिस घोषणा पत्र में उत्सर्जन स्तर को 2030 तक 2005 के स्तर का 33-35 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया है। समानता और सहभागी सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए भारत ने जलवायु परिवर्तन के खतरे की जवाबी कार्रवाई प्रणाली को सशक्त बनाया है।
  • सतत विकास के संदर्भ में सर्वेक्षण कहता है कि भारत की शहरी जनसंख्या 2031 तक 600 मिलियन हो जाएगी। शहरी स्थानीय निकाय नगर पालिका बॉन्ड, सार्वजनिक निजी समझौता तथा क्रेडिट जोखिम गारंटी जैसे वित्तीय व्यवस्थाओं के माध्यम से संसाधन निर्माण करते हैं। सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए आधार है- सतत, आधुनिक और सस्ती ऊर्जा। 30 नवंबर, 2017 तक कुल ऊर्जा क्षमता में नवीकरणीय ऊर्जा का हिस्सा 18 प्रतिशत था और यह पिछले 10 वर्षों में तीन गुणा बढ़ा है।
  • शिक्षा के लिए स्थायी विकास लक्ष्य-4 (एसडीजी) हासिल करने की सरकार की प्रतिबद्धता का उल्लेख किया गया है। इसमें प्राथमिक शिक्षा के वैश्विकरण, दाखिलों में पर्याप्त वृद्धि तथा बच्चों की प्राथमिक, प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के दर में पर्याप्त वृद्धि के साथ उल्लेखनीय प्रगति का जिक्र किया गया है। स्कूलों की प्रतिशत वृद्धि हुई है। जिससे छात्र कक्षा कमरा अनुपात और शिष्य शिक्षक अनुपात मानदण्डों के अनुपालन में अंतर्राज्यीय अंतर का भी उल्लेख है।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रति प्रतिबद्धता के संदर्भ में सर्वेक्षण ने 8 वैश्विक प्रौद्योगिकी निगरानी समूहों के गठन का उल्लेख किया है। इससे जलवायु परिवर्तन कार्य योजना जो 2014 में शुरू हुई थी, को 2017-18 से 2019-20 तक का विस्तार दिया गया है। इसके लिए 132.4 करोड़ रुपये की धनराशि आवंटित की गई है। राष्ट्रीय अनुकूलन कोष को भी 31 मार्च, 2020 तक विस्तार दिया गया है। इसके लिए 364 करोड़ रुपये की धनराशि निर्धारित की गई है।

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