पटना, 18 अगस्त 2020: कोविड-19 ने प्रवासी कामगारों एवं उनके परिवारों को कई तरह से प्रभावित किया है। ख़ास तौर पर बच्चों और महिलाओं को ज़्यादा कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। इसे देखते हुए बिहार सरकार को प्रवासी मज़दूरों के बच्चों के लिए शिक्षा व्यवस्था, परिवारों के लिए टीकाकरण की सुविधा, स्वास्थ्य सेवाओं के बुनियादी ढांचे में गुणात्मक सुधार, प्रवासियों के लिए परामर्श केन्द्रों की स्थापना समेत श्रमिकों के लिए आजीविका सृजन आदि बिंदुओं पर तत्काल कार्यवाही करने की आवश्यकता है, यूनिसेफ़-डीएमआई द्वारा किए गए नवीनतम अध्ययन में इस बात की सिफ़ारिश की गई है।
यूनिसेफ के तकनीकी सहयोग से डी.एम.आई द्वारा किये गए शोध अध्ययन (बिहार में प्रवासी कामगारों और उनके परिवारों पर कोविड-19 के प्रभाव के गुणात्मक समीक्षा) के निष्कर्षों के प्रसार को लेकर कार्यशाला आयोजित की गई। डॉ. उर्वशी कौशिक, सामाजिक नीति विशेषज्ञ, यूनिसेफ बिहार ने इस अध्ययन की ज़रूरत के संदर्भ में कहा कि आजीविका के नुकसान और अनिश्चितता के कारण 20 लाख से अधिक प्रवासी श्रमिकों के रिवर्स माइग्रेशन से प्रवासी मजदूरों और उनके परिवारों को अभूतपूर्व कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। महिलाओं और बच्चों को ख़ास कर चिंता और भय जैसे मनोवैज्ञानिक मुद्दों के अलावा भोजन, आश्रय, स्वास्थ्य देखभाल और मजदूरी के नुकसान से संबंधित तत्काल समस्याओं का सामना करना पड़ा है। इसे देखते हुए युनिसेफ़-डीएमआई द्वारा प्रवासी मजदूरों और उनके परिवारों पर कोविड-19 के प्रभाव का आकलन करने के लिए यह अध्ययन किया गया है। डॉ. हेमनाथ राव एच, निदेशक, डीएमआई, ने अपने स्वागत भाषण में इस तरह के अकादमिक अभ्यास के महत्व को रेखांकित किया। इसके ज़रिए बिहार सरकार को उपलब्ध नीति निर्देशों को स्पष्ट किया जा सके और एक सुसंगत सामाजिक सुरक्षा प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए सिफारिशें भी प्रदान की जा सकेंगी ताकि प्रवासी मजदूरों और उनके परिवारों के सामने आने वाली समस्याओं को प्रभावी ढंग से दूर किया जा सके।
वंचित समूहों की महिलाओं तथा बच्चों के बारे में बात करते हुए शिवेंद्र पांड्या, कार्यक्रम प्रबंधक, यूनिसेफ बिहार ने कहा कि इस महामारी के काल में रिवर्स माइग्रेशन एक सच्चाई बन चुकी है। इससे महिलाएं और बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं क्योंकि सबसे ज्यादा समस्याएँ उन्हें ही झेलनी पड़ती हैं। ये अध्ययन बताता है कि 14-17 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों ने बड़ी संख्या में अपने परिवारों के साथ वापस घरों की ओर पलायन किया है।
चर्चा में शामिल होते हुए श्याम बिहारी मीना, संयुक्त सचिव, आपदा प्रबंधन विभाग, बिहार सरकार ने अध्ययन का स्वागत किया और कहा कि इससे बिहार सरकार को वे तकनीकी सलाहें भी मिल पायी हैं, जिससे रोजमर्रा के स्तर पर बीमारी का सामना करने वालों को भी सहायता मिलेगी। उन्होंने आगे जोड़ा कि सरकार के लिए ये 19 लाख एक संख्या नहीं बल्कि उतनी कहानियां हैं और पूरे सरकारी अमले ने अलग-अलग विभागों को साथ लेकर उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए काम किया है।
आद्री के निदेशक, प्रोफेसर प्रभात घोष ने कहा कि अलग अलग नीतियों के बीच मनरेगा सबसे कामयाब पहल सिद्ध हुई है। छोटे समय के लिए आजीविका को सुचारू रूप से चलाने के लिए बिहार सरकार को इस कार्यक्रम में मौजूद कमियों को भी दूर करना होगा। पीडीएस सिस्टम की पहुँच करीब-करीब हर जगह है लेकिन इसे और सक्षम बनाया जाना चाहिए।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संस्था के लक्ष्मी नरसिम्हन गडिराजू ने कहा कि कार्यस्थल पर स्वास्थ्य की चिंता और सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है और इसके प्रति जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है। ज्यादातर प्रवासी मजदूर अकुशल होते हैं। इसलिए कुशलता प्रदान करने वाले कार्यक्रम से जोड़कर इन्हें कुशल बनाना आवश्यक है। जैसा कि स्टडी में बताया गया है कि प्रवास संसाधन केंद्र प्रवासियों के बारे में जानकारी इकट्ठा करने में अहम योगदान करेगा। हालांकि इन केंद्रों को आर्थिक रूप से सही ढंग से चलाने से ही उद्देश्य की पूर्ति होगी। सामाजिक सुरक्षा योजनाएं प्रवासी मजदूरों के लिए महत्वपूर्ण है। अंतर्राष्ट्रीय प्रवास के लिए अंतर्देशीय अनुबंध अहम है। बच्चों की पढ़ाई के लिए खुले विद्यालयों को बढ़ावा देने की जरूरत है।
सेव द चिल्ड्रेन के राफे हुसैन ने कहा कि आंगनबाड़ी केंद्रों के बंद होने और डिजिटल शिक्षा सभी के पहुंच में न होने के कारण बच्चों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ा है। महामारी के समय बाल श्रम में बढ़ोतरी देखने को मिली है। बाढ़ की विभीषिका के कारण प्रवासी परिवारों की परेशानियां और बढ़ गई है। इसलिए स्टडी में सुझाए गए सुझावों पर विचार किया जाना चाहिए।
डीएमआई की शोध टीम, जिसमें प्रोफेसर अदिति ठाकुर, प्रोफेसर नमन सरीन, प्रोफेसर शंकर पूर्वे और प्रोफेसर सूर्य भूषण शामिल थे, ने 4 मुख्य विषयों – तैयारी, प्रतिक्रिया, सुधार और न्यूनीकरण पर एक विस्तृत प्रस्तुति दी। इस अध्ययन के लिए डाटा अलग-अलग स्रोतों जैसे मीडिया रिपोर्ट, एमआईएस, बिहार सरकार के अलग-अलग वेबसाइट और अलग-अलग विभागों के हितधारकों, एनजीओ/सीएसओ आदि के अलावा आईएलओ टीम, अकादमिक और मीडिया शोधकर्ताओं से चर्चा के जरिये इकठ्ठा किया गया।
प्रश्नोत्तर सत्र में पैनल में बैठे हुए सदस्यों ने प्रतिभागियों के प्रश्नों का उत्तर दिया। इस कार्यशाला का समापन सैयद मंसूर उमर कादरी, बाल सुरक्षा विशेषज्ञ, यूनिसेफ बिहार के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ।