पटना, 12 जून: अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन और यूनिसेफ के अनुसार दुनिया भर में बाल श्रमिकों की संख्या बढ़कर 16 करोड़ हो गई है। 12 जून को मनाए जाने वाले विश्व बाल श्रम निषेध दिवस से ठीक पहले जारी चाइल्ड लेबर: ग्लोबल एस्टिमेट्स 2020, ट्रेंड्स एंड थे रोड फॉरवर्ड नामक इस संयुक्त रिपोर्ट के मुताबिक़ पिछले चार वर्षों में ही 84 लाख बच्चों की वृद्धि दर्ज की गई है और कोविड-19 के प्रभावों के कारण लाखों और बच्चे ख़तरे में हैं। साथ ही, यह महत्वपूर्ण रिपोर्ट चेतावनी देती है कि बाल श्रम को समाप्त करने की प्रगति 20 वर्षों में पहली बार रुक सी गई है।
यूनिसेफ बिहार की राज्य प्रमुख नफीसा बिंते शफीक ने अपने संदेश में कहा कि बाल श्रम में बढ़ोतरी को लेकर किया गया वैश्विक अनुमान बड़ी चिंता का विषय है। 2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार में 5 से 14 वर्ष के आयु वर्ग के 10.88 लाख बच्चे बाल श्रम में लिप्त हैं; इनमें सीमांत श्रमिकों की श्रेणी वाले बच्चों की संख्या 6.3 लाख है। फिर, कोविड-19 ने स्थिति को और भी खराब कर दिया है। महामारी के कारण अतिरिक्त आर्थिक झटके और स्कूल बंद होने का मतलब है कि अधिक बच्चे स्कूल छोड़ने को मजबूर हैं। जहां पहले से ही बाल श्रम में लगे बच्चों द्वारा ज़्यादा घंटों तक काम करने की संभावना बढ़ी है, वहीं उन्हें ज़्यादा ख़तरनाक क़िस्म के बाल श्रम में धकेले जाने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। लड़कियां तो और भी अधिक असुरक्षित होती हैं। बाल श्रम को जड़ से समाप्त करने के लिए विभिन्न सरकारी विभागों, सिविल सोसाइटी, राजनीतिक दलों, धार्मिक नेताओं और मीडिया द्वारा नए सिरे से प्रतिबद्धता और समन्वित कार्रवाई का यह उचित समय है। कमजोर बच्चों और परिवारों की नियमित ट्रैकिंग के साथ-साथ मुक्त कराए गए और पुनर्वासित बच्चों की समुचित सहायता और देखभाल महत्वपूर्ण है। वयस्कों के लिए आजीविका और रोजगार के साधन तलाशे जाने चाहिए ताकि वे बच्चों को शिक्षा से जोड़कर उन्हें अपनी पूरी क्षमता हासिल करने योग्य बना सकें।
समाज कल्याण विभाग, बिहार सरकार के अनुसार, 1 अप्रैल 2020 से 31 मार्च 2021 तक दूसरे राज्यों में तस्करी किए गए 289 बच्चों को बचाकर बिहार वापस लाया गया। बाल श्रम ट्रैकिंग प्रणाली पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार इसी अवधि में बाल श्रमिक के रूप में काम करने वाले 160 बच्चों को बिहार के अलग-अलग ज़िलों से मुक्त कराकर पुनर्वासित किया गया। बाल श्रम संबंधी शिकायतों की रिपोर्ट करने के लिए व्हाट्सऐप नंबर 9471229133 या चाइल्ड लाइन हेल्पलाइन नंबर 1098 पर कॉल या मैसेज किया जा सकता है।
कोविड-19 महामारी और उसके बाद लागू लॉकडाउन ने बच्चों को कई गुना असुरक्षित कर दिया था. इसे देखते हुए यूनिसेफ बिहार ने रेलवे सुरक्षा बल/सरकारी रेलवे पुलिस, चाइल्ड लाइन इंडिया फाउंडेशन और सिविल सोसाइटी भागीदारों के सहयोग से 11 विशिष्ट रेलवे स्टेशनों पर सुरक्षित सफर परियोजना शुरू की। एक महीने की इस मुहीम का उद्देश्य विभिन्न गंतव्यों से बिहार लौट रहे प्रवासी बच्चों को तत्काल राहत प्रदान करना था। यूनिसेफ बिहार के बाल संरक्षण विशेषज्ञ सैयद मंसूर उमर कादरी ने बताया कि 3 मई से 31 मई 2021 के बीच 178 बच्चे जो या तो अकेले थे, लापता थे या घर से भागे हुए थे, उन्हें बचाने में सफलता मिली। इसके तहत लोगों को बच्चों की सुरक्षा से जुड़े विभिन्न पहलुओं के बारे में लगातार जागरूक भी किया गया।
बाल श्रम और बाल विवाह को समाप्त करने की दिशा में किए जा रहे प्रयासों के क्रम में समाज कल्याण विभाग, बिहार सरकार द्वारा EVAC (बच्चों के खिलाफ हिंसा का ख़ात्मा) परियोजना का दूसरा चरण मई 2021 में शुरू किया गया। मोटे तौर पर, इसका उद्देश्य बाल श्रम/स्कूल ड्राप आउट की प्रकृति, बाल तस्करी और बाल विवाह से छुड़ाए और बहाल किए गए बच्चों के बारे में साक्ष्य एकत्र करना, बच्चों के आर्थिक शोषण और बाल विवाह से निबटने के लिए बाल संरक्षण संरचनाओं को मजबूत करना और बच्चों की असुरक्षा को कम करने के लिए समुदाय-आधारित तंत्र को बढ़ावा देना है। तीन सहयोगी एजेंसियों, सेव द चिल्ड्रन, एक्शन एड और प्रथम की मदद से, यूनिसेफ इस परियोजना को बिहार के 22 जिलों के 338 ब्लॉकों में लागू कर रहा है।