केर्रोट एंड द स्टिक”

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अलग संदर्भ अलग अर्थ

एक ही बात का कई बार अलग अलग मतलब भी निकलता है। कोई “कल” कह रहा हो तो वो बीते कल की बात कर रहा है, आने वाले कल की या मशीनी कल-पुर्जे की, ये सन्दर्भ देखे बिना कहना भी मुश्किल है। एक ही जुमले का अलग अलग विधाओं में अलग अलग मतलब भी होता है। स्वास्थ्य सेवा में काम करने वाले के लिए ई.वी.एम. का जो मतलब निकलता है वो टीकाकरण से सम्बंधित है तो राजनीति वाला ई.वी.एम. कुछ और ही काम आता है। इस वजह से जब जुमलों के इस्तेमाल की बात होती है तो कदम फूंक फूंक कर रखने चाहिए।

मार्केटिंग वाला जब अंग्रेजी जुमले “केर्रोट एंड स्टिक” का इस्तेमाल करता है तो उसका वो मतलब बिलकुल नहीं होता जो आमतौर पर साहित्य में पढ़ाया जाता। वो डंडे से बंधे किसी गाजर की ही बात नहीं कर रहा होता, जिसके लालच में गधा आगे बढ़ता जाए। उसके लिए इसका एक छुपा हुआ मतलब भी होता है। किसी काम को करवाने के दो आसान तरीके होते हैं। एक तो उत्कोच यानी फायदे का लालच देकर काम करवाना और दूसरा सज़ा का डर दिखा कर काम करवाना। केर्रोट यहाँ इंसेंटिव मतलब लालच है और स्टिक यानी डंडे का मतलब तो सब जानते ही हैं।

जब स्वच्छ भारत अभियान और शौचालयों की बात चली थी तो उसमें पहले सिर्फ फायदे की बात की जाती थी। सरकारी मशीनरी का एक बड़ा वर्ग सोचता था कि शौचालय बनवा देंगे तो लोग फायदे के लिए उसका इस्तेमाल करेंगे ही। अब एक तो काम शुरू ही देर से हुआ था, ऊपर से जिसको फायदे बताये जाने थे वो शिक्षित भी नहीं थे। इसका नतीजा ये हुआ कि योजनाएं कागजों पर बनती रही और जमीन पर ढेर भी होती रहीं। करीब तीन दशक पिछड़ने के बाद जब काम शुरू भी हुआ तो ऐसे तरीकों से हुआ कि जोर पकड़ ही नहीं पाया। पिछले पचास वर्षों में योजना का नाम-स्वरुप बदलता रहा, नतीजे नहीं बदले।

इस बार जब स्वच्छ भारत मिशन पर सरकार ने ध्यान दिया तो केवल लाभ की बात नहीं कि। उसके साथ दंड के विधान भी ग्राम पंचायत के द्वारा सख्ती से लागू करने पर ध्यान दिया गया। जैसा कि अंदेशा था, अख़बारों में इसके खिलाफ लिखने वालों ने पन्नों पर पन्ने रंग डाले। विरोध करने वालों की जमीनी सच्चाई के ज्ञान का अंदाजा था इसलिए काम विरोध के बाद भी जारी रहा। राजनैतिक हित साधने के लिए जब मुट्ठी भर लोग विरोध कर रहे थे तो इन प्रयासों का असर जमीन पर दिखाई देने लगा। खुले में शौच करते पकड़े जाने पर होने वाली बेइज्जती से अड़ियल लोग भी घबराने लगे थे।

पुलिस मुसहर बने प्रेरणास्‍त्रोत

रोहतास के एक छोटे से गाँव में मजदूरी से जीवन-यापन करते पुलिस मुसहर तक जब ये पकड़े जाने की बात पहुंची तो वो भी सोच में पड़ गए। वो अपनी दो बेटियों में से एक की शादी कर चुके हैं और परिवार के लिए कमाने वाले इकलौते सदस्य हैं। उन्हें लगा कि अगर पुलिस उन्हें पकड़ कर ले गयी तो भला उनके परिवार का गुजारा कैसे होगा? सब तो भूखों मर जायेंगे! पुलिस मुसहर ने कुछ सूअर पाल रखे थे। एक दिन उन्होंने अपना एक सूअर बेचा, पैसे लिए और जुट गए शौचालय बनवाने में। उनके इस काम से इलाके के और लोगों को भी प्रेरणा मिली कि किस तरह शौचालय बनवाया जा सकता है।

उनके टोले में करीब पचास घर हैं और उनका गाँव पूरी तरह खुले में शौच से मुक्त है। कई घर जिसमें परिवार के सदस्यों की संख्या ज्यादा है, वो अब एक से ज्यादा शौचालय बनवाने की तरफ भी बढ़ रहे हैं। शौचालयों का नतीजा ये हुआ है कि इलाके के बच्चो के पेट में कीड़ों की समस्या, अक्सर पेट खराब होना, और दूसरी ऐसी छोटी मोटी बिमारियों में कमी पर गाँव के लोगों का ध्यान जाने लगा है। प्रेरणा के स्रोत बने पुलिस मुसहर के टोले के लोग अब उन्हें ज्यादा सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। मुखिया और गाँव में आने वाले दुसरे कई लोग भी उनसे मिलने आते हैं जो उन्हें अच्छा लगता है।

एक अदालत स्‍वच्‍छता के लिए

रोहतास के इलाकों में अब स्वच्छता अदालत (पंचायत) भी लगती है। रोहतास के हर पंचायत में सत्‍याग्रह केंद बनाए गए है जहां इनका आयोजन किया जाता है। ग्राम पंचायत द्वारा लगाए जाने वाले इस अदालत में पांच तरीकों का इस्तेमाल करते हुए, समझाने बुझाने, जुर्माने से लेकर धारा 133 के अंतर्गत मामले दर्ज करने के जरिये शौचालय निर्माण को प्रोत्साहित किया जाता है।

सत्‍याग्रह केंद्र का उद्देश्य लोगों को दंडित करना नहीं अपितु नागरिकों की सहभागिता से अधिक-से अधिक पेड़ लगाना, कचरा मुक्त वातावरण बनाना, शौचालय की सुविधा उपलब्ध कराकर एक स्वच्छ भारत का निर्माण करना है। साथ ही इसका उद्देश्य अधिक-से-अधिक लोगों को इस अभियान से जोड़कर इसे एक जन-आंदोलन बनाना है जिससे 2019 तक गांधीजी का स्वच्छ भारत का स्वप्न पूरा किया जा सके। इसमें ग्राम पंचायत के सदस्‍य, बाल संसद के सदस्‍य, निर्वाचित जनप्रतिनिधि, प्रखंड स्‍तर के पदाधिकारी और पंचायत स्‍तर के पदाधिकारी शामिल होते हैं।

इस दिशा में लगातार काम का नतीजा ये है कि रोहतास के शहरी ही नहीं दूर दराज के ग्रामीण क्षेत्र भी खुले में शौच से करीब करीब 100% मुक्त हैं। कई ख़बरों के हिसाब से दंड का विधान सही नहीं था। नतीजों के लिहाज से देखें तो “केर्रोट एंड द स्टिक” में से कभी कभी “स्टिक” भी अच्छा काम करता है।

 

 

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