दरभंगा 9 जनवरी: कोविड-19 महामारी के कारण स्कूल महीनों से बंद हैं और ज़्यादातर बच्चे अपने घरों में बेकार बैठे हैं। सहपाठियों और दोस्तों के साथ कोई संपर्क नहीं होने और किसी भी सार्थक गतिविधि से जुड़ाव नहीं होने से बच्चों में बोरियत, चिंता, मानसिक तनाव आदि समस्याएं बहुत तेज़ी से उभरी हैं। इस चिंताजनक परिदृश्य को देखते हुए यूनिसेफ के सहयोग से किलकारी बाल भवन ने राज्य के अलग-अलग हिस्सों में कई सार्थक गतिविधियों की शुरुआत की है जो न केवल बच्चों को उनके तनाव से निपटने में मदद कर रही हैं बल्कि हर दिन कुछ नया सीखने में मदद के साथ-साथ उनकी रचनात्मकता को भी नई उड़ान दे रही हैं। इसी कड़ी में मामूली जुराबों से कठपुतली निर्माण और विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर आधारित पपेट शो एक ऐसी ही पहल है जिसके माध्यम से बच्चे कोविड महामारी के दौरान बरते जाने वाली सावधानियों जैसे मास्क पहनना, नियमित रूप से हाथ धोना, समुचित दूरी का पालन इत्यादि के साथ-साथ बाल अधिकारों का संदेश भी फैला रहे हैं। किलकारी और यूनिसेफ ने बिहार बाल भवन किलकारी दरभंगा में 6 जनवरी-9 जनवरी तक चार दिवसीय कठपुतली निर्माण कार्यशाला का आयोजन किया जिसमें 10 से 16 आयु वर्ग के सरकारी स्कूलों के 26 बच्चों (11 लड़कियां और 15 लड़के) ने हिस्सा लिया। कार्यशाला के दौरान बच्चों ने पुराने मोजे का उपयोग करके कठपुतलियां बनाना सीखा और पुराणी चीज़ का इस्तेमाल कर पर्यावरण सुरक्षा के बारे में भी जागरूक हुए।
किलकारी की निदेशक ज्योति परिहार ने इस गतिविधि की अवधारणा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कठपुतली निर्माण बच्चों के लिए बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक गतिविधि है। अपनी आंखों और हाथों को समन्वित करना सीखने के अलावा, बच्चे इस कला के माध्यम से विभिन्न सामाजिक मुद्दों को लेकर अपनी समझ भी बेहतर बनाने में सक्षम होते हैं। इसके अलावा वे सामाजिक मुद्दों को लेकर प्रभावी ढंग से संवाद करना सीखते हैं और आवाज मॉड्यूलेशन में विशेषज्ञता प्राप्त करते हैं जो उनके व्यक्तित्व विकास में बहुत सहायक है। उन्होंने यह भी बताया कि इस तरह की एक कठपुतली कार्यशाला पहले ही भागलपुर जिले में आयोजित की जा चुकी है।
कार्यशाला के अंतिम दिन कठपुतली शो में शामिल हुईं यूनिसेफ कम्युनिकेशन स्पेशलिस्ट, निपुण गुप्ता ने बच्चों की सराहना करते हुए कहा कि बच्चों द्वारा ख़ूबसूरत कठपुतलियों और समसामायिक मुद्दों को लेकर पिरोई गई कहानियों के ज़रिए कोविड काल में मास्क पहनने और हाथ धोने के साथ-साथ पर्यावरण सुरक्षा और बाल अधिकारों से जुड़े संदेश देना बहुत अच्छा लगा।
13 वर्षीया परी कुमारी ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि प्रशिक्षकों ने हमें मोज़ों से कठपुतलियाँ बनाना सिखाने के अलावा उनकी उनकी भाव-भंगिमा की बारीकियों के बारे में भी बताया। 12 वर्षीया श्रद्धा कुमारी ने कहा कि कहानी ‘ना से नानी ’के जरिए शिक्षा के अधिकार के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा। 14 वर्षीय समीर राज ने कहा कि कठपुतलियाँ बनाना और उनके माध्यम से महत्वपूर्ण संदेश देने का तरीका सीखने के दौरान हमें यह भी पता चला कि यदि किसी बच्चे के साथ कोई गलत काम होता है, तो हमें उसे रोकने और उसकी मदद करने की पूरी कोशिश करनी चाहिए।
जहां पहले तीन दिन बच्चों को कठपुतली की बारीकियों को सिखाया गया, वहीं आखिरी दिन कार्यशाला के दौरान प्रशिक्षुओं द्वारा ‘कोविड-19 एवं बड़ों का सम्मान’ विषय पर तैयार किए गए कठपुतली शो का प्रदर्शन किया गया। साथ ही, चयनित स्क्रिप्ट शो “न से नानी” और “जंगल बुक” के रूप में दो विशेष प्रस्तुतियाँ भी दी गईं। बच्चों ने इन प्रस्तुतियों संबंधी अवधारणा और शो निर्माण के बारे में भी अपने अनुभव साझा किए।
तीनों विशेषज्ञों – मधुसूदन कुमार, कठपुतली विशेषज्ञ और सुश्री नीलम कुमारी और राहुल कुमार (किलकारी में बाल सहियोगी के नाम से जाने जाने वाले वरिष्ठ बच्चे जो पहले से प्रशिक्षित हैं और अब प्रशिक्षक के रूप में कार्य करते हैं) ने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि सभी प्रशिक्षु बच्चे बहुत प्रतिभाशाली हैं और हमें भी उनके साथ काम करके बहुत कुछ सीखने को मिला। किलकारी और यूनिसेफ़ के रचनात्मक कार्यों की प्रशंसा करते हुए प्रशिक्षकों ने भविष्य में विभिन्न जिलों में अधिक से अधिक कठपुतली कार्यशालाओं के आयोजन की आशा जताई।
कार्यशाला के समापन के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में संजय कुमार देव ‘कन्हैया’, कार्यक्रम पदाधिकारी, मध्याहन भोजन एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. लावण्या कीर्ति सिंह ‘काव्या’, पूर्व विभागाध्ययक्ष, संगीत एवं नाट्य विभाग, इंद्र कुमार कर्ण, कार्यक्रम पदाधिकारी, समग्र शिक्षा एवं डॉ. ए. एन. जयसवाल, शिशु रोग विशेषज्ञ मौजूद रहे। अतिथियों ने अपने संबोधन में कोरोना काल में भी किलकारी द्वारा निरंतर आयोजित किए जा रहे सृजनात्मक कार्यों की खूब सराहना की।